एकूण लेख संख्येच्या अंदाजे २% पेक्षा अधिक लेख भाषांतर प्रतिक्षेत (इंग्रजी मसुद्याच्या स्वरूपात) असू नयेत असा संकेत आहे.
स्वतःच्या संपादन संख्येच्या २% पेक्षा अधिक लेखात मसुदे परभाषेत चिटकवू नयेत.
दादरा और नगर हवेली का गहरा इतिहास हमलावर राजपूत राजाओं द्वारा क्षेत्र के कोली सरदारों की हार के साथ शुरू होता है। मराठों ने राजपूतों को हरा कर 18वीं सदी के मध्य में अपना शासन स्थापित किया। मराठों और पुर्तगालियों के बीच लंबे संघर्ष के बाद 17 डिसेंबर (डिसेंबर) 1779 को मराठा पेशवा माधव राव II[8][9] ने मित्रता सुनिशचित करने के खातिर इस प्रदेश के 79 गावों को 12,000 रुपए का राजस्व क्षतिपूर्ति के तौर पर पुर्तगालियों को सौंप दिया। जनता द्वारा 2 ऑगस्ट,1954 को मुक्त कराने तक पुर्तगालियों ने इस प्रदेश पर शासन किया। 1954 से 1961 तक यह प्रदेश लगभग स्वतंत्र रूप से काम करता रहा जिसे ‘स्वतंत्र दादरा एंव नगर हवेली प्रशासन’ ने चलाया। लेकिन 11 ऑगस्ट 1961 को यह प्रदेश भारतीय संघ में शामिल हो गया और तब से भारत सरकार एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में इसका प्रशासन कर रही है। पुर्तगाल के चंगुल से इस क्षेत्र की मुक्ति के बाद से ‘वरिष्ठ पंचायत’ प्रशासन की परामर्शदात्री संस्था के रूप में कार्य कर रही थी परंतु इसे 1989 में भंग कर दिया गया और अखिल भारतीय स्तर पर संविधान संशोधन के अनुरूप दादरा और नगर हवेली जिला पंचायत और 11 ग्राम पंचायतों की एक प्रदेश परिषद गठित कर दी गई।[3]